परिपूतेषु धान्येषु शाकमूलफलेषु च ।निरन्वये शतं दण्डः सान्वयेऽर्धशतं दमः ।।8/331 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
परिपक्व तथा शोधित धान्य, शाक, मूल व फल इनमें से किसी एक वस्तु के चुराने में यदि चोर स्वामी के वश का हो अर्थात् स्वदेशवासी आदि सम्बन्ध रखता हो तो पचास पण दण्ड और सम्बन्धी व वंश का न हो तो सौ पण दण्ड देवें।