Manu Smriti
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मत्स्यानां पक्षिणां चैव तैलस्य च घृतस्य च ।मांसस्य मधुनश्चैव यच्चान्यत्पशुसंभवम् ।।8/328
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मछली, पक्षी, तेल, घी, माँस, मधु, विविध मृगचर्म, बारहसिंगा के सींग आदि व अन्य पदार्थ जो व्यवहार में आते हैं।
 
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