Manu Smriti
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वेणुवैदलभाण्डानां लवणानां तथैव च ।मृण्मयानां च हरणे मृदो भस्मन एव च ।।8/327
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मोटे बाँस के टुकड़े से बना हुआ जल पात्र, मिट्टी का पात्र, राख लवण (नमक)।
 
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