Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नित्य अन्न की पूजा करें और अन्न का अपमान न करें और अन्न को देखकर प्रसन्न चित्त हो यह कह कर कि हमको सदैव ऐसा अन्न मिले, भोजन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नित्यम् प्रतिदिन खाते हुए अशनं पूजयेत् भोज्य पदार्थ का आदर करे च और एतद् + अकुत्सयन् + अद्यात् इसे निन्दाभाव से रहित होकर अर्थात् श्रद्धापूर्वक खाये दृष्ट्वा वा हृष्येत् च प्रसीदेत् भोजन को देखकर मन में उल्लास और प्रसन्नता की भावना करे च तथा सर्वशः प्रतिनन्देत् उसकी सर्वदा प्रशंसा करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्रह्मचारी भोजन की नित्य सराहने करे और उसकी निन्दा न करता हुआ भक्षण करे। तथा अन्न को देखकर सब प्रकार से हृष्ट, प्रसन्न और आनन्दित होवे।