Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार पुण्य कर्म करने वाले स्वर्ग में जाते हैं, उसी तरह अपराधी व पापी राजा से दंडित होने से पवित्र होकर स्वर्ग में जाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य पाप - अपराध करके पुनः राजाओं से दण्डित होकर अर्थात् राजा द्वारा दिये गये दण्डरूप प्रायश्चित्त को करके पवित्र - दोषमुक्त होकर सुख को प्राप्त करते हैं जैसे अच्छे कर्म करने वाले श्रेष्ठ लोग सुखी रहते हैं । अभिप्राय यह है कि प्रायश्चित्त करने पर उस पापरूप अपराध के संस्कार क्षीण हो जाते हैं, और दोषी होने की भावना नहीं रहती उससे तथा पुनः श्रेष्ठकर्मों में प्रवृत्ति होने से मनुष्य सन्तों की तरह मानसिक शान्ति - सुख को प्राप्त करते हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो मनुष्य पाप करते हैं और राजा से यथाविधि दण्ड पा लेते हैं वह निर्मल होकर स्वर्ग को जाते हैं, जैसे पुण्यात्मा साधु।