Manu Smriti
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अन्नादे भ्रूणहा मार्ष्टि पत्यौ भार्यापचारिणी ।गुरौ शिष्यश्च याज्यश्च स्तेनो राजनि किल्बिषम् ।।8/317

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भ्रूणहत्या (गर्भपात) करने वाला, व्यभिचारिणी स्त्री, शिष्य यज्ञ करने हारा, तथा चोर यह सब अपने पाप को यथा क्रम भोजन करने वाले, पति, गुरु, राजा इनमें धोते हैं अर्थात् इनको पाप लगता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. भ्रूण हत्या करने वाला उसके यहां भोजन करने वाले को भी निन्दा का पात्र बना देता है अर्थात् जैसे भू्रणहत्यारे को बुराई मिलती है वैसे ही उसके यहां अन्न खाने वाले को भी उसके कारण बुराई मिलती है व्यभिचारी स्त्री की बुराई उसके पति को मिलती है बुरे शिष्य की बुराई उसके गुरू को मिलती है और यजमान की बुराई उसके यज्ञ कराने वाले ऋत्विक्गुरू को मिलती है इसी प्रकार दण्ड न देने पर चोर की बुराई राजा को मिलती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
गर्भहत्या का पाप उसको भी लगता है जो ऐसे पुरुष का अन्न खावें। व्यभिचारिणी स्त्री का पाप पति को भी लगता है। शिष्य या यज्ञ करने वाला कुछ भूल करे तो उसका पाप गुरु को लगता है। चोर चोरी करे तो उसका पाप राजा को लगता है।
 
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