Manu Smriti
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शासनाद्वा विमोक्षाद्वा स्तेनः स्तेयाद्विमुच्यते ।अशासित्वा तु तं राजा स्तेनस्याप्नोति किल्बिषम् ।।8/316

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा उसे दण्ड दे अथवा छोड़ दे तो वह पापी चोरी के पाप से छूट जाता है। और यदि राजा दयालुता के कारण उसे दण्ड न दे तो चोर के पाप को राजा पावे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सजा पाकर या (स्वयं प्रायश्चित्त करने के बाद) राजा के द्वारा क्षमा कर दिये जाने पर चोर चोरी के अपराध से मुक्त हो जाता है चोर को दण्ड न देने पर राजा को चोर की बुराई मिलती है अर्थात् फिर प्रजाएं उस चोर के स्थान पर राजा को अधिक दोष देती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उस समय वह चोर दण्डित होने पर या मुक्त किये जाने पर चोरी के अपराध से छूट जाता है। परन्तु यदि राजा उसे दण्ड न देकर सर्वथा छोड़ देता है तो वह चोर के अपराध का भागी बनता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
चोर चोरी के पाप से दो प्रकार से छूटता है (शासनाद् वा विमोक्षाद् वा) या तो दण्ड पाकर या स्वीकार (Confession) करने की अवस्था में क्षमा पाकर। जो राजा चोर को चोरी का दण्ड नहीं देता, वह स्वयं चोरी का अपराधी है।
 
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