Manu Smriti
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स्कन्धेनादाय मुसलं लगुडं वापि खादिरम् ।शक्तिं चोभयतस्तीक्ष्णां आयसं दण्डं एव वा ।।8/315

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मूसल, लाठी व खर का दण्डा, दोनों ओर तीक्ष्ण धार वाली बरछी, व लोहे का डण्डा कन्धे पर रख कर उस प्रकार कहें कि मैं ऐसा कर्म करने वाला हूँ मुझको इससे दण्ड दीजिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. चोर को कन्धे पर मुसल अथवा खैर का दंड, दोनों ओर से तेज धारवाली बरछी अथवा लोहे का दंड ही रखकर (राजा के पास जाना चाहिए और कहे कि ‘मैं चोर हूं, मुझे दंड दीजिए’) ।
टिप्पणी :
अनुशीलन - इस श्लोक का पूर्व श्लोक के साथ सम्बन्ध है । ऊपर के श्लोक में दी हुई व्यवस्था के साथ इस श्लोक में कहे हुए, विकल्पों में से चुनकर किसी एक व्यवस्था के अनुसार चोर को प्रायश्चित्त करना है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि कोई चोर केश खोलकर और कन्धे पर मूसल, या खैर की लाठी, या दोनों ओर से तीक्ष्ण धारवाली वर्छी, या लोहे का डण्डा रखे हुए१ दौड़ता हुआ राजा के पास पहुँचे और उस चोरी को बताता हुआ कहे कि राजन्! मैंने इस प्रकार यह चौरकर्म किया है, मैं दण्ड का भागी हूं, मुझे दण्ड दीजिए।
 
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