Manu Smriti
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निग्रहेण हि पापानां साधूनां संग्रहेण च ।द्विजातय इवेज्याभिः पूयन्ते सततं नृपाः ।।8/311

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
निश्चय करके पापियों (अपराधियों) को दण्ड देने तथ साधू महात्माओं की रक्षा करने से राजा यज्ञ करने वाले (अग्नि होत्री) ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य के समान पवित्र होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
क्यों कि पापी - दुष्टों को वश में करने और दण्ड देने से तथा श्रेष्ठ लोगों की सुरक्षा करने से राजा लोग जैसे द्विजवर्ण वाले यज्ञों से पवित्र होते हैं ऐसे ही पवित्र अर्थात् पुण्यवान् और निर्मल यशवान् होते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि राजा लोग पापियों के निग्रह और साधुजनों के संग्रह से उसी प्रकार सदा पवित्र होते हैं, जैसे कि द्विज लोग यज्ञों के करने से पवित्र होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(नृपाः) राजा लोग (सततम्) सदा (पापानां निग्रहेण साधूनां संग्रहेण च पूयन्ते) पापियों को दण्ड देने और भले आदमियों को बढ़ाने से पवित्र होते हैं (द्विजातयः इज्याभिः इव) जैसे द्विज लोग यज्ञों से।
 
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