Manu Smriti
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योऽरक्षन्बलिं आदत्ते करं शुल्कं च पार्थिवः ।प्रतिभागं च दण्डं च स सद्यो नरकं व्रजेत् ।।8/307

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो राजा प्रजा की रक्षा न करता हुआ प्रजा से अन्न का छठा भाग कर तथा शुल्क (चुंगी) आदि और दण्ड के भाग को ग्रहण करता है वह राजा शीघ्र ही दुर्गति को प्राप्त हो नरक में जाता है।
टिप्पणी :
राजा का कर आदि सुप्रबन्ध व सुव्यवस्था के अर्थ हैं जो राजा न्याय तथा रक्षा न करते हुये कर आदि ग्रहण करता है वह राजा नहीं वरन् दस्यु (डाकू) है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो राजा प्रजाओं की बिना रक्षा किये उनसे छठा भाग अन्नादि टैक्स महसूल चुंगी और जुर्माना ग्रहण करता है वह शीघ्र ही दुःख को प्राप्त होता है अर्थात् प्रजाओं का ध्यान न रखने के कारण उनके असहयोग से किसी - न - किसी कष्ट से आक्रान्त हो जाता है ।
टिप्पणी :
अनुशीलन - अन्न के छठे भाग को ‘बलि’ कहते हैं, प्रतिमास, छठे मास या वार्षिक रूप में लिया जाने वाला टैक्स ‘कर’, व्यापारियों से लिया जाने वाला महसूल ‘शुल्क’, फल, शाक आदि पर लिया जाने वाला शुल्क ‘प्रतिभाग’, तथा अपराध में किया जाने वाला जुर्माना ‘दण्ड’ कहलाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु जो राजा प्रजा की रक्षा न करता हुआ उससे भूमिकर, टैक्स, चुंगी और दण्डरूप में जुर्माना वसूल करता है, वह शीघ्र महादुःख को पाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो राजा बिना रक्षा किये भेंट, कर, शुल्क, प्रतिभाग (चुंगी) या दण्ड के रूप में लेता है वह नरक को जाता है।
 
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