Manu Smriti
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रक्षन्धर्मेण भूतानि राजा वध्यांश्च घातयन् ।यजतेऽहरहर्यज्ञैः सहस्रशतदक्षिणैः ।।8/306

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब प्राणियों की धर्मानुकूल रक्षा करता हुआ और दण्डनीय अपराधियों को उचित दण्ड देता हुआ राजा मानो लाख मुद्रा दक्षिणा वाले यज्ञ को प्रति दिन करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धर्मपूर्वक - न्यायपूर्वक प्रजाओं की रक्षा करता हुआ और दण्डनीय या वध के योग्य लोगों को दण्ड या वध करता हुआ राजा यह समझो कि प्रतिदिन हजारों - सैंकड़ों दक्षिणाओं से युक्त यज्ञों को करता है अर्थात् इतने बड़े यज्ञों जैसा पुण्यकार्य करता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो राजा धर्मपूर्वक सब प्राणियों की रक्षा करता है और ताड़ना करने योग्य दुष्टों का नाश करता है, वह मानो प्रतिदिन लाखों प्रकार की दक्षिणायों वाले यज्ञों से यज्ञ करता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो राजा धर्मपूर्वक प्राणियों की रक्षा करता है और अपराधियों को दण्ड देता है वह मानों प्रतिदिन लाख दक्षिणा वाला यज्ञ करता है।
 
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