Manu Smriti
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अभयस्य हि यो दाता स पूज्यः सततं नृपः ।सत्त्रं हि वर्धते तस्य सदैवाभयदक्षिणम् ।।8/303

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो राजा उत्तम प्रबन्ध द्वारा प्रजा को अभय दान देता है। यह सदा पूज्य है क्योंकि उसका (राज्य रूप) यज्ञ, जिसकी दक्षिणा अभय दान ही बढ़ता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो राजा प्रजाओं को अभय प्रदान करने वाला होता है अर्थात् जिस राजा के राज्य में प्रजाओं को चोर आदि से किसी प्रकार का भय नहीं होता वह सदैव पूजित होता है - प्रजाओं की ओर से उसे सदा आदर मिलता है, और उसका अभय की दक्षिणा देने वाला यज्ञ रूपी राज्य सदा बढ़ता जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो राजा अपनी प्रजा को अभय देता है, वह सदा पूज्य होता है, क्योंकि उसका प्रजापालनरूपी राज्य-यज्ञ सदा बढ़ता रहता है, कि जिस यज्ञ में दक्षिण अभय की दी जाती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जिस राजा के राज्य में किसी प्रकार का भय नहीं वह बहुत पूज्य है। उसका यह ’राज्य‘ रूपी (सत्र) यज्ञ अभयरूपी दक्षिणा से वृद्धि को प्राप्त होता है।
 
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