Manu Smriti
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द्रव्याणि हिंस्याद्यो यस्य ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपि वा ।स तस्योत्पादयेत्तुष्टिं राज्ञे दद्याच्च तत्समम् ।।8/288

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कोई मनुष्य यदि किसी अन्य के द्रव्य को जानकर अथवा अज्ञानता में नष्ट करे तो उसे प्रसन्न व आनन्दित करे और उस धन के तुल्य राजा को दण्ड स्वरुप देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो कोई जिस किसी के जानकर अथवा अनजाने में वस्तुओं को नष्ट कर दे तो वह अपराधी उसके मालिक को वस्तु या धन आदि देकर संतुष्ट करे तथा उसके बराबर दण्ड रूप में राजा को भी दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो बानबूझ कर व अनजाने में किसी के पदार्थों का नुकसान करे, वह बदला देकर उस मालिक की संतुष्टि करे और मुक़द्दमा चलने पर उस वस्तु के मूल्य जितना धन राजा को भी जुर्माने के रूप में दे।
 
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