Manu Smriti
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अङ्गावपीडनायां च व्रणशोनितयोस्तथा ।समुत्थानव्ययं दाप्यः सर्वदण्डं अथापि वा ।।8/287

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
हाथ पाँव आदि अंगों में छेद करने और रक्त निकालने द्वारा पीड़ा पहुंचाने वाला मनुष्य उस चुटहल मनुष्य के स्वास्थय लाभ करने तक का सम्पूर्ण (अर्थात् भोजन आदि का) व्यय देवे। यदि उस व्यय को न देवे तो वह अपराधी पूर्ण दण्ड पावें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
किसी अंग के टूटने, कटने आदि पर और घाव करने तथा रक्त बहाने पर जब तक रोगी पहले जैसी अवस्था के रूप में ठीक न हो जाये तब तक सम्पूर्ण औषधि आदि का व्यय मारने वाले से दिलवाये और साथ ही यदि उचित समझे तो उस पर पूर्ण दण्ड करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
किसी के अङ्ग पर अधिक चोट लगाने पर, किंवा घाव हो जाने या खून निकल आने पर राजा को चाहिए कि वह उस पीड़ित व्यक्ति को उस प्रहारकर्ता से पूर्ववत् अच्छी हालत में होने तक का सब खर्च दिलावे अथवा पूर्वनिर्दिष्ट प्रकार से साथ जुर्माने का भी दण्ड दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अंग, व्रण तथा रक्त की पीड़ा होने पर मारने वाला इलाज का खर्चा दे या पूरा जुर्माना।
 
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