Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
त्वचा को छेदने वाला, रक्त निकालने वाला, यह दोनों सौ पण दण्ड देवे तथा मास पृथक करने वाला छः निष्क दण्ड पावे। हड्डी तोड़ने वाले को देश निकाला देवें। यह दण्ड एक सामान जानना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये सात (८।२७९ - २८५) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं -
१. प्रसंग - विरोध - (क) मनु ने २८६ - २८८ श्लोकों में सब वर्णों के लिये समभाव से दण्ड - पारूष्य की दण्डव्यवस्था कही है । परन्तु २७९ - २८३ तक श्लोकों में शूद्र के लिये (ब्राह्मण का अपमान करने पर) पक्षपात पूर्ण दण्ड का विधान है । यदि इसे सत्य माना जाये, तो दूसरे वर्णों के लिये भी पृथक् विधान अवश्य करना चाहिये था । किन्तु वैसा न होने से स्पष्ट है कि ये श्लोक शूद्र के प्रति पक्षपात पूर्ण ढंग से लिखे गये हैं । (ख) और २८५ वें श्लोक में वृक्षादि के नष्ट करने पर दण्ड का विधान किया है, जो कि दण्डपारूष्य प्रकरण से भिन्न होने के कारण असंगत ही है ।
२. अन्तर्विरोध - इन श्लोकों में वर्णित दण्ड - व्यवस्था मनु की मान्यता से विरूद्ध है । एतदर्थ ८।२६७ - २७२ श्लोकों की समीक्षा द्रष्टव्य है ।
३. शैली - विरोध - २७९वें श्लोक में ‘मनोरनुशासनम्’ पदों से स्पष्ट है कि ये श्लोक किसी दूसरे ने ही मनु के नाम से बनाये हैं । और इन श्लोकों की शैली मनु की भांति गम्भीर, न्याययुक्त न होकर पक्षपातपूर्ण, दुराग्रह एवं घृणां के भावों से पूर्ण हैं । अतः ये श्लोक प्रक्षिप्त हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो मारपीट में किसी का चमड़ा छील दे या लहू निकाल दे, उसे १०० पण, और जो मांस छेदन करदे, उसे छः निष्क जुर्माना करना चाहिए। और, जो हड्डी तोड़ दे, उसे देश से निकाल दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो मार-पीट में खाल छिल जाय तो पीटने वाले को सौ पण दण्ड मिले, रक्त निकल आवे तो भी सौ पण, मांस कट जाय तो छः निषक दण्ड मिले। हड्डी टूट जाय तो देश निकाला।