Manu Smriti
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काणं वाप्यथ वा खञ्जं अन्यं वापि तथाविधम् ।तथ्येनापि ब्रुवन्दाप्यो दण्डं कार्षापणावरम् ।।8/274

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो काना व लँगड़ा या इसी प्रकार कोई अन्य अंगहीन है उसको सत्य भाषण में भी अंगहीन न कहना चाहिये और यदि कहें तो एक कार्षापण तक दण्डनीय है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. किसी काने को अथवा लंगडे को अथवा इसी प्रकार के अन्य विकलांगों को वास्तव में वैसा होते हुए भी किसी को काना, लंगड़ा आदि कहने पर कम से कम एक कार्षापण दण्ड करना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो काणे को काणा, लंगड़े को लंगड़ा और इसी प्रकार अन्य हीन अंग का निर्देश करता हुआ सत्य भी कहे, तो भी उसे कम से कम एक कार्षापण दण्ड देना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
काने, लंगड़े या ऐसे ही किसी को कोई सचमुच भी इन नामों से पुकारें तो एक कार्षापण दण्ड का भागी हो।
 
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