Manu Smriti
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श्रुतं देशं च जातिं च कर्म शरीरं एव च ।वितथेन ब्रुवन्दर्पाद्दाप्यः स्याद्द्विशतं दमम् ।।8/273

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब सवर्ण वालो के दण्ड को कहते हैं कि जो मनुष्य किसी से अहंकार वश यह कहे कि तुम्हारा यह स्थान नहीं है तुम इस देश में उत्पन्न नहीं हुए, तुम्हारी यह जाति नहीं है, तुम्हारे यज्ञोपवीत आदि कर्म नहीं हुए राजा उसे दो सौ पण दण्ड देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. कोई मनुष्य किसी मनुष्य के विद्या देश वर्ण और शरीर - सम्बन्धी कर्म के विषय में घमण्ड में आकर झूठी निन्दा अथवा गलत बात करे, उसे दो सौ पण दण्ड देना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो मनुष्य किसी की विद्या, देश, जाति व शारीरिक कर्म के सम्बन्ध में अभिमानवश झूठे अपवाद फैलाता हो, उसे दो सौ पण जुर्माना करना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
विद्या, देश, जाति, (शारीरम् कर्म) संस्कार इनके विषय में क्रोध से कोई अनर्थ बोले तो दो सौ पण जुर्माना दे। अर्थात्-जो पुरुष किसी अन्य पुरुष की विद्या, देश, जाति या संस्कार के विषय में क्रोध में आकर झूठी खबरें (libel case) फैलाता है वह दो सौ पण जुर्माने के योग्य है।
 
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