Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चिन्हों एवं साक्षियों आदि उपर्युक्त उपायों से सीमा के निर्धारित न हो सकने पर न्याय का ज्ञाता राजा स्वयं ही वादि - प्रतिवादियों के उपकार अर्थात् हितों को ध्यान में रखकर भूमि सीमा को निश्चित कर दे ऐसी शास्त्र - व्यवस्था है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि किसी भी तरह ग्रामों या गृहादिकों की सीमा का बन्धन न किया जा सकता हो, तो धर्मज्ञ राजा स्वयमेव, उपकार की द्ष्टि से इन में से जिनका भी उपकार होता हो, उसे देदे या बांट दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सीमायाम् अविषह्मायाम्) जिस सीमा के विषय में कुछ साक्षी मिले ही नहीं उसमें राजा स्वयं ही प्रमाण है, धर्मानुसार न्याय जानकर जितना उचित समझे उतना बंटवारा कर दे।