Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि आस पास के ग्राम निवासी व जमींदार न मिलें तो उसी गाँव के निवासी जो अन्य ग्राम में वास करते हों उनसे पूछे, यदि ऐसे लोग भी अप्राप्त हों तो समीप के वन के वासी चरवाहों आदि पुरुषों से पूछें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये तीन (८।२५९ - २६१) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं -
१. अन्तर्विरोध - (क) यहां सीमा - सम्बन्धी विवादों में मूलज्ञाता साक्षियों के अभाव में वन में घूने वाले शिकारी, सपेरे, चरवाहे आदि से पूछ कर निर्णय करने की व्यवस्था लिखी है । परन्तु यह व्यवस्था मनु - सम्मत नहीं है । क्यों कि सीमासम्बन्धी विवादों में मूलज्ञाताओं का अभाव ही हो जाये, यह सम्भव नहीं है । चारों तरफ ग्रामों के होने से कुछ तो अवश्य मिल जायेंगे । और यदि मूलज्ञाता साक्षी नहीं मिलते, तो मनु के ८।१८२ श्लोक के अनुसार गुप्त चरों की सहायता से निर्णय लेना चाहिये । किन्तु यहां उस व्यवस्था से विरूद्ध अयोग्य साक्षियों की बात निरर्थक कही गई है ।
(ख) मनु ने ८।६३ - ६४ में साक्षियों के गुणों तथा साक्षी के अयोग्यों का निषेध किया है । ८।६४ में ‘न दूषिताः’ कहकर दूषित आचरण वालों को साक्षी के अयोग्य माना है । किन्तु यहां दूषित आचरण वाले शिकारी आदि की साक्षी की व्यवस्था उससे विरूद्ध है । अतः ये श्लोक मनुप्रोक्त नहीं है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु यदि गांव आबाद होने के समय से कुलक्रमागत गांव के मुड्ड रूप पार्श्ववर्ती गांवों के मुखिया सीमा के सम्बन्ध में साक्षी बनने के लिए न हों, तो राजा इन अधोलिखित वन में विचरने वाले पुरुषों को सीमाज्ञान के लिए पूछे-