Manu Smriti
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शिरोभिस्ते गृहीत्वोर्वीं स्रग्विणो रक्तवाससः ।सुकृतैः शापिथाः स्वैः स्वैर्नयेयुस्ते समञ्जसम् ।।8/256
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वह सब सीमा सम्बन्धी साक्षी फूलमाला व लाल वस्त्र धारण कर सिर पर मिट्टी का ढेला रख के तथा यह सोच कर कि यदि हम असत्य भाषण करें तो हमारा सब सुकृत निष्फल हो ठीक-ठीक ज्यों का त्यों कहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये दो (८।२५६ - २५७) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं - १. अन्तर्विरोध - साक्षी विवादों में कैसे हों, उनकी क्या - क्या विशेषतायें हैं, उनकी मिथ्या साक्षी पर क्या - क्या दण्ड होना चाहिये, यह सभी प्रसंग मनु ने ८।५७ - १३० श्लोकों में कह दिया है । यहां फिर उस प्रसंग को प्रारम्भ करना असंगत है और इनमें उनसे भिन्न दण्ड का विधान करने अथवा शपथ लेने का कथन करने के कारण ये श्लोक मनु से विरूद्ध हैं । और शपथ लेने की बात भी मनु की मान्यता से विरूद्ध है । मनु ने विवाद में साक्षियों को आवश्यक माना है और साक्षियों के अभाव में (८।१८२) गुप्तचरों से पता लगाने की व्यवस्था की है, शपथों से नहीं । यहां शपथों की व्यवस्था की है, उससे विरूद्ध तथा अवैदिक विधान होने से सत्य नहीं है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ते) वे साक्षी लोग (शिरोभिः उर्वी गृहीत्वा) सिरों पर मिट्टी रखकर, (स्रग्विणः) माला लिये हुये (रक्त वाससः) और लाल कपड़ा पहने हुये (स्वैः स्वैः सुकृतैः शापिताः नयेयुः) शपथ खायं कि यदि हम झूठ बोलते हैं तो हमारे समस्त शुभ कर्म नष्ट हो जायँ।
 
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