Manu Smriti
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यानि चैवंप्रकाराणि कालाद्भूमिर्न भक्षयेत् ।तानि संधिषु सीमायां अप्रकाशानि कारयेत् ।।8/251

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
बालू रेत और जितने भी इस प्रकार के पदार्थ हैं जिन्हें बहुत समय तक भूमि अपने रूप में न मिला सके उनको गुप्तरूप से अर्थात् जमीन में दबाकर सीमास्थानों पर रखवा दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पत्थर, हड्डियां, गाय के बाल, भूसा, राख, खोपड़ियां, सूखे कण्डे, ईंटें, कोयले, कंकड़-बज़री, रेत, तथा ऐसे ही अन्य पदार्थ जिन्हें कालान्तर में शीघ्र भूमि न खा जावे, अर्थात् उन की मिट्टी न बन जावे, उन्हें सीमा के संधिस्थानों में गुप्त तोर पर गड़वावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इनको और ऐसी ही अन्य वस्तुओं को जिनको समय पाकर भूमि खा न जाय, ऐसी चीजों को सीमा पर बहुत गहरा गढ़वा देना चाहिये।
 
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