Manu Smriti
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शरान्कुब्जकगुल्मांश्च तथा सीमा न नश्यति ।तडागान्युदपानानि वाप्यः प्रस्रवणानि च ।।8/248

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सीमा के संधिस्थानों पर तालाब, कुंए वावलियां, नालियाँ और विद्यालय-यज्ञशाला आदि देवस्थान बनवाने चाहिएँ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तड़ाग) तालाब, (उदप) कुंये, (वापी) बावड़ी, (प्रस्रवणानि) झरने (देवतायनानि) यज्ञशालायें सीमा में बनानी चाहियें।
 
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