Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शिर के बालों तक का ब्राह्मण, ललाट (पेशानी, मत्था) तका क्षत्रिय, वैश्य नाक तक के दण्ड को धारण करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. प्रमाणतः माप के अनुसार ब्राह्मणस्य दण्डः ब्राह्मण का दण्ड केशान्तिकः केशों तक राज्ञः ललाटसंमितः क्षत्रिय का माथे तक कार्यः बनाना चाहिए तु और विशः वैश्य का नासान्तिकः स्यात् नाक तक ऊंचा होना चाहिये ।
टिप्पणी :
ब्राह्मण के बालक को खड़ा रख के भूमि से ललाट के केशों तक पलाश वा बिल्ववृक्ष का, क्षत्रिय को वट वा खदिर का ललाट भू्र तक, वैश्य को पीलू वा गूलर वृक्ष का नासिका के अग्रभाग तक दंड प्रमाण और वे दंड चिकने, सूधे हों, अग्नि में जले, टेढ़े कीड़ों के खाये हुये नहीं हों ।’’
(सं० वि० वेदा० सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
नाप से ब्राह्मण ब्रह्मचारी का दण्ड केशों तक का, क्षत्रिय ब्रह्मचारी का माथे तक का, और वैश्य ब्रह्मचारी का नाक तक का हो।