Manu Smriti
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अनिर्दशाहां गां सूतां वृषान्देवपशूंस्तथा ।सपालान्वा विपालान्वा न दण्ड्यान्मनुरब्रवीत् ।।8/242
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चरवाहा साथ हो व न हो ऐसी गऊ जिसे ब्याहे हुये दश दिन नहीं हुए हैं औरन वह दश दिन के भीतर खेत नष्ट कर दे अथवा साँड खेत को चर दे तो अदण्डनीय है यह मनुजी ने कहा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये दो (८।२४२ - २४३) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं - १. प्रसंग - विरोध - यहां पशुस्वामी और चरवाहे के विवादों का प्रसंग चल रहा है । उस प्रसंग में (२४३ वें श्लोक में) कृषक व नौकर की असावधानी से होने वाली हानि पर दण्ड की व्यवस्था का प्रसंग असंगत है । २. शैली - विरोध - और २४२ वें श्लोक में ‘मनुरब्रवीत्’ इस वाक्य से स्पष्ट है कि यह श्लोक मनु से भिन्न व्यक्ति ने मनु के नाम से बनाकर मिलाया है । मनु अपना नाम लेकर कहीं कुछ नहीं कहते । अतः यह श्लोक प्रक्षिप्त है ।
 
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