Manu Smriti
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वृतिं तत्र प्रकुर्वीत यां उष्ट्रो न विलोकयेत् ।छिद्रं च वारयेत्सर्वं श्वसूकरमुखानुगम् ।।8/239

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उस क्षेत्र (खेत) के बचाने के अर्थ इतनी ऊँची बाड़ बनावें जिसको ऊँट देख न सके सम्पूर्ण छिद्रों को बन्द कर दें जिसमें कुत्ता व सूअर का मुँह उसमें न जा सके और वे अन्न को न खा सकें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वहां, अर्थात् गोचर-भूमि के समीपवर्ती खेत में, मेंड, इतनी ऊँची होनी चाहिए कि जिससे भीतर के धान्य को ऊंट न देख सके। और, उसमें ऐसे छिद्र न रहने दे, जिस में कुत्ते या सूअर का मुंह जा सके।
 
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