Manu Smriti
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तत्रापरिवृतं धान्यं विहिंस्युः पशवो यदि ।न तत्र प्रणयेद्दण्डं नृपतिः पशुरक्षिणाम् ।।8/238

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि वहाँ छुटी हुई भूमि के समीप बाड़ से न घिरे हुये अन्न को पशु नष्ट कर दें तो राजा वहाँ के पशु-रक्षक को दण्ड न देवे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वहां, चरते हुए पशु यदि किसी समीपवर्ती बिना मेंड के खेत का धान्य चर जावें, तो राजा चरवाहों को दण्ड न दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उस भूमि में (अपरिवृतम् धान्यम्) बिना घेरे के जो घास आदि हो उसको यदि पशु बिगाड़ दे तो राजा चरवाहों को दण्ड न दे।
 
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