Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गाय आदि पशुओं के चरने के अर्थ गाँव के चारों ओर सौ धनुष (चार सौ हाथ) भूमि राजा त्याग दे (उसमें कृषि न करनी चाहिये) तथा हाथ से लाठी फैंकने से जहाँ गिरे उतनी भूमि की तिगुनी में अन्नादि न बोये और नगर के चारों ओर ग्राम की गोचर भूमि की तिगुनी भूमि छोड़ दे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को चाहिये कि वह पशुओं के चरने के लिए ग्राम के चारों ओर चार चार सौ हाथ, किंवा चरवाहे वाली पशु हांकने की लाठी तीन वार पूरे बल से फैंकने पर जितनी दूरी तक पहुंचे उतनी खेत से छुटी भूमि रखे। और, नगर के चारों ओर इससे तिगुनी भूमि चरागाह के लिए छोड़े।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ग्रामस्य समन्ततः) गाँव के आस पास सौ धनु (चार सौ हाथ) या ’शम्यापात‘ अर्थात् तीन लाठी की लम्बाई में (परीहारः) भूमि छूटी रहनी चाहिये। नगर में तिगुनी।