Manu Smriti
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दिवा वक्तव्यता पाले रात्रौ स्वामिनि तद्गृहे ।योगक्षेमेऽन्यथा चेत्तु पालो वक्तव्यतां इयात् ।।8/230
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दिन में पशु चराने वालों के समीप यदि स्वामी द्वारा सौंपे हुए पशु की रक्षा न हो सके तो वह पशु चराने वाला अपराधी होता है और रात्रि समय में स्वामी के घर में अहीर को सौंपा हुआ पशु की रक्षा न हो सके तो अहीर अपराधी होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (८।२३०वां) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है - १. पुनरूक्त - दोष - इस श्लोक में कहा है कि पशु की किसी प्रकार की हानि यदि दिन में होती है, तो उसकी जिम्मेदारी चरवाहे की होती है । किन्तु यह बात तो मनु ने २३२ - २३३ श्लोकों में कही है । और २३१ वें श्लोक में चरवाहे की मजदूरी निश्चित की है । और रात में भी चरवाहे की जिम्मेदारी कहना निरर्थक ही है, क्यों कि चरवाहा तो दिन में ही पशु ले जाता है । अतः पुनरूक्त एवं निरर्थक बातों का कथन करने से यह श्लोक प्रक्षिप्त है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
दिन में जवाबदेही चरवाहे की और रात्रि को, स्वामी के घर में पशुओं को छोड़ जाने पर, स्वामी की जवाबदेही हेाती है। परन्तु यदि रात्रि में भी पशुसंरक्षण के लिए चारे आदि की व्यवस्था में गड़बड़ी हो और चरवाहे ने उसका ठीक-ठीक प्रबन्ध न किया हो, तो भी जबावदेही उसी चरवाहे पर पड़ेगी।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दिन में चरवाहे का उत्तरदायित्व है, रात में अपने घर मालिक का। यदि पशु के योगक्षेम (स्वास्थय, चारा आदि) में कोई कसर हो तो चरवाहे का।
 
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