Manu Smriti
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क्रीत्वा विक्रीय वा किं चिद्यस्येहानुशयो भवेत् ।सोऽन्तर्दशाहात्तद्द्रव्यं दद्याच्चैवाददीत वा ।।8/222

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
किसी द्रव्य के खरीदने व बेचने के पश्चात् उसके विषय में यह पश्चाताप हो कि यह व्यौपार ठीक ठीक नहीं हुआ तो दस दिन के बीच ही में लौटा देना उचित है और वह ग्रहण कर लेवें।
टिप्पणी :
222वें श्लोक से विदित होता है कि व्योपार में फेर फारका नियम परमावश्यक है। और इस नियम द्वारा कपट नहीं हो सकता। क्योंकि द्रव्य (वस्तु) की निकृष्टता (खराब हालत) में फेर देने का नियम है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
किसी वस्तु को खरीद कर या बेच कर यदि पीछे उस पर किसी को पश्चात्ताप हो, तो वह उस वस्तु को दस दिन के अन्दर उस दूकानदार को वापिस दे दे, या वह दूकानदार उस ग्राहक से दस दिन के अन्दर वापिस ले ले। दस दिन के बाद वह वस्तु न लौटायी जा सकती है और न ली जा सकती है। यदि व्यापारी जबर्दस्ती उसे लेना चाहे, या ग्राहक जबर्दस्ती उसे देना चाहे, तो राजा उस अपराधी को ६४० पण ज़ुर्माना करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(क्रीत्वा) खरीद कर (वा विक्रीय) या बेच कर (किंचित्) किसी चीज को (यस्य इहं अनु शयः भवेत्) यदि किसी को पसन्द न आवे (सः) वह (अन्तर्दशाहात्) दस दिन के भीतर (तत् द्रव्यम्) उस चीज को (दघात् आददीत वा) लौटा दे या लौटा ले।
 
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