Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेतन न देने की विधि को कहा। तत्पश्चात् अब किसी कार्य के करने में सहमत होकर उसे न करे तो उसका धर्म कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (८।२१७ वां) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है -
१. अन्तर्विरोध - २१६वें श्लोक में कहा है कि जो कर्मचारी ठीक काम करता है, उसे रूग्ण - काल का वेतन देना चाहिये । किन्तु २१७ वें श्लोक में उससे विरूद्ध बात कही है कि यदि कर्मचारी रोगी होने पर अपना कार्य पूरा करता है, तब तो वेतन दिया जाये, अन्यथा नहीं । अतः पूर्वोक्त विधान से विरूद्ध कथन होने से यह श्लोक प्रक्षिप्त है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वेतन के न देने के विषय में यह धर्मव्यवस्था पूर्णरूप से कही गयी। अब इसके बाद प्रतिज्ञा-भंग करने वालों के सम्बन्ध में न्यायधर्म बतलाता हूं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इतना वेतन न देने के सम्बन्ध में कहा। अब (समय भेदिनाम्) प्रतिज्ञा तोड़ने वालों के संबंध में कहता हूँ।