Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बलवान तथा निरोगी (हृष्ट पुष्ठ) मनुष्य ने एक कार्य करना स्वीकार किया और अहंकार वश नहीं करता है तो राजा उससे आठ रत्ती सोना दण्ड लेवे और वेतन उसको दिला दे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो भृत्य रोगपीड़ित न होने पर अहङ्कार से जैसा कहा जावे वैसा, काम न करे, तो उसे आधा सुवर्ण जुर्माना करना चाहिए और उस दिन का वेतन न देना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः भृतः) जो नौकर (अनार्तः) बिना बीमारी के (दर्पात्) क्रोध से (यथोदितम् कर्म न कुर्वात्) कहे हुये काम को न करें। उस को वेतन न दिया जाय और उस पर आठ कृष्णल जुर्माना हो।