Manu Smriti
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दत्तस्यैषोदिता धर्म्या यथावदनपक्रिया ।अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि वेतनस्यानपक्रियाम् ।।8/214

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दी हुई वस्तु को लौटा लेने की विधि को कहा तत्पश्चात् तन न देने की विधि को कहते हैं।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि दिए हुए पदार्थ को धर्मपूर्वक यथावत् समर्पित न करने की बात कही गयी। अब इसके बाद वेतन न देने की बात कहता हूँ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इतना दिये हुये धन की ’अनपक्रिया‘ अर्थात् लौटाने आदि के विषय में धर्म बताया। अब वेतन अर्थात् तनख्वाह सम्बन्धी (अनप क्रिया) गड़-बड़ के विषय में कहूँगा।
 
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