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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
दत्तस्यैषोदिता धर्म्या यथावदनपक्रिया ।अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि वेतनस्यानपक्रियाम् ।।8/214
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
दी हुई वस्तु को लौटा लेने की विधि को कहा तत्पश्चात् तन न देने की विधि को कहते हैं।
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Commentary by
: पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि दिए हुए पदार्थ को धर्मपूर्वक यथावत् समर्पित न करने की बात कही गयी। अब इसके बाद वेतन न देने की बात कहता हूँ।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इतना दिये हुये धन की ’अनपक्रिया‘ अर्थात् लौटाने आदि के विषय में धर्म बताया। अब वेतन अर्थात् तनख्वाह सम्बन्धी (अनप क्रिया) गड़-बड़ के विषय में कहूँगा।
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