Manu Smriti
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यदि संसाधयेत्तत्तु दर्पाल्लोभेन वा पुनः ।राज्ञा दाप्यः सुवर्णं स्यात्तस्य स्तेयस्य निष्कृतिः ।।8/213

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि लोभ वश वह न देवे व दाता देने की प्रतिज्ञा कर फिर न देवे और याचक बलात् धन ग्रहण कर धर्म में नहीं लगाता तो राजा इन दोनों से चोरी के दण्ड में एक सुवर्ण सिक्का दण्ड स्वरूप लेकर दाता को देदे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, यदि वह दान लेने वाला अभिमान व लोभ से उस धन को वापिस मांगने पर भी मनमाना खर्च करे और वापिस न दे, तो राजा को चाहिए कि वह उसे उस चोरी के अपराध से छुटकारा पाने के लिए एक सुवर्ण दण्ड दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि वह (दर्पात् लोभेने वा) क्रोध से या लोभ से उसको फिर ले तो राजा उसको सुवर्ण का दण्ड दे। (तस्य स्तेयस्य निष्कृतिः) इस चोरी का यही प्रायश्चित्त है।
 
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