Manu Smriti
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धर्मार्थं येन दत्तं स्यात्कस्मै चिद्याचते धनम् ।पश्चाच्च न तथा तत्स्यान्न देयं तस्य तद्भवेत् ।।8/212

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
किसी दाता ने किसी बालक को धर्मार्थ कुछ दान किया और वह उस धन को ग्रहण करके धर्म में कुछ नहीं लगाता है। तो उस धन को दान दाता उससे फेर लेवे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि किसी ने प्रार्थी को किसी धर्म-कार्य के लिए धनदान किया हो, परन्तु पीछे वह दान लेनेवाला उस धन को उस धर्मकार्य में न लगावे, तो वह धन उसका देय नहीं होता। अर्थात्, उस से वह दान किया हुआ धन वापिस ले लेना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(येन) जिसने (कस्मै चित् याचिते) किसी मांगने वाले को (धर्मार्थम्) धर्म के लिये (धनम् दत्तम् स्यात्) धन दे दिया हो (पश्चात् तस्य तत् तथा न स्यात्) तो फिर वह उसको दुबारा दान नहीं कर सकता। (तस्य तत् अदेयम् भवेत्) वह उसके लिये देने योग्य नहीं है।
 
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