Manu Smriti
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संभूय स्वानि कर्माणि कुर्वद्भिरिह मानवैः ।अनेन विधियोगेन कर्तव्यांशप्रकल्पना ।।8/211

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपने कर्म को एकत्र हो पूर्ण करने वाले इस विधि से परस्पर विभाजित करें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, जो मनुष्य मिलकर काम करें, इस न्यायव्यवहार में, उनके हिस्सों का निर्णय उपर्युक्त विधि से करना चाहिए।
 
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