Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण को मूनकी तीन लड़ की मेखला, क्षत्रिय को मूर्वा की दो लड़ की मेखला, और वैश्य को सन की तीन लड़ की मेखला धारण करनी चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. विप्रस्य ब्राह्मण की मेखला मेखला - तगड़ी मौंज्जी ‘मूंज’ नामक घास की बनी होनी चाहिए क्षत्रियस्य मौर्वी ज्या क्षत्रिय की धनुष की डोरी जिससे बनती है उस ‘मुरा’ नामक घास की,और वैश्यस्य वैश्य की शणतान्तवी सन के सूत की बनी हो जो त्रिवृत् समा तीन लड़ों को तिगुनी करके श्लक्ष्णा कार्या चिकनी बनानी चाहिए ।
टिप्पणी :
‘‘आचार्य सुन्दर चिकनी प्रथम बना के रखी हुई मेखला को बालक के कटि में बांधे’’
‘‘ब्राह्मण की मुंज वा दर्भ की, क्षत्रिय की धनुष संज्ञक तृण या वल्कल की और वैश्य की ऊन वा शण की मेखला होनी चाहिए ।’’
(सं० वि० वेदा० सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्राह्मण ब्रह्मचारी की मेखला मुंज की चिकनी, क्षत्रिय ब्रह्मचारी की धनुष संज्ञक तृण की ज्या सद्श द्ढ़, और वैश्य ब्रह्मचारी की सन के सूत की बनानी चाहिए। परन्तु ये मेखलायें समान-समान तीन-तीन लड़ियों की होनी चाहियें।