Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
नान्यदन्येन संसृष्ट रूपं विक्रयं अर्हति ।न चासारं न च न्यूनं न दूरेण तिरोहितम् ।।8/203

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
एक चीज को धोखा देकर उसी प्रकार के रूप की दूसरी चीज बताकर बेचना ठीक
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS