Manu Smriti
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अथ मूलं अनाहार्यं प्रकाशक्रयशोधितः ।अदण्ड्यो मुच्यते राज्ञा नाष्टिको लभते धनम् ।।8/202

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिससे माल खरीदा, उसका पता न लगे, पर यह प्रकट हो कि उसने बाजार में ही उसे दाम देकर खरीदा है, तो वह खरीदार दण्ड का भागी नहीं होता। राजा को उसे छोड़ देना चाहिए और जिसका यह माल गुम हुआ था, उसे माल वापिस दे देना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अनाहार्यम् मूलम्) न लेने योग्य वस्तु को (प्रकाश क्रय शोधितः) सब के सामने खुल्लमखुल्ला खरीदनेवाला (राज्ञा अदण्डयः मुच्यते) राजा से दण्डनीय नहीं होता। परन्तु (नाष्टिकः धनम् लभते) जिसकी वस्तु नष्ट हुई है, वह धन का अधिकारी है। तात्पर्य यह है कि यदि कोई आदमी किसी वस्तु को झूठमूठ अपनी बताकर बेच दे और कोई दूसरा सब के सामने खुल्लमखुल्ला मोल लेले, तो राजा उस खरीदनेवाले को दण्ड न दे। परन्तु वह धन चीज के असली मालिक को दिला दे।
 
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