Manu Smriti
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विक्रयाद्यो धनं किं चिद्गृह्णीयत्कुलसंनिधौ ।क्रयेण स विशुद्धं हि न्यायतो लभते धनम् ।।8/201

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
व्योहारी के समक्ष में हाट (पैंठ) से किसी वस्तु को मोल लिया और मोल लेना प्रमाणित हो तो न्यायानुकूल वह उस वस्तु का मोल लेने वाले धन का दाता है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु जिसने व्यापारीकुल के सामने बेच कर कुछ धन प्राप्त किया हो, तो वह धन की खरीदारी से उस धन को विशुद्ध प्रमाणित करके उसे न्यायानुसार प्राप्त कर सकता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो साक्षियों के सामने किसी वस्तु को बेचकर धन पाता है, वह यह सिद्ध करने पर कि मैंने यह वस्तु अमुक स्थान से खरीदी थी, न्याय के अनुकूल धन का अधिकारी हो जाता है।
 
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