Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्वामी की आज्ञा बिना जो वस्तु बेची, मोल ली व दी ली जाती है। वह व्यवहार विधि में अनुचित व अमान्य है अर्थात् वह वस्तु बेची हुई, मोल ली हुई, दी हुई वा ली हुई न समझना चाहिये।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, जो माल नमालिक ने दिया वा बेचा हो, उसे न्याय-व्यवहार की मर्यादा के अनुसार दिया या बेचा हुआ न समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो किसी चीज का वास्तविक स्वामी नहीं है, उसका दिया हुआ या बेचा हुआ नियम और व्यवहार के अनुसार दिया हुआ या बेचा हुआ न समझा जावे।