Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि बेचने वाला उस स्वामी के कुल का हो तो छ सौ पण दण्ड देने योग्य है। तथा यदि वश का न हो तो चोर के समान दण्डनीय है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि बेचनेवाला उसी वंश का हो, तो उस पर छः सौ पण जुर्माना करें। यदि उस वंश का न हो और (अनपसरः प्राप्तः) मुख्तार भी न हो, तो उस पर चोर का दोष लगे।