Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि कोई धरोहर धरी हुई वस्तु को उसके स्वामी की आज्ञा बिना बेचता है। तो बेचने वाले को चोर समझना चाहिये तथा उेस साक्षी न समझें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो नमालिक स्वामी की सम्मति के बिना दूसरे का माल बेचता है, जोकि न उसका वंशज है और न उसे बेचने का हक प्राप्त है, तो वह चोर के दण्ड को प्राप्त होवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः अस्वामी) जो मालिक नहीं है, वह यदि स्वामी की सम्मति के बिना दूसरे की चीज को न बेच दे, वह (स्तेनम्) चोर है और अपने को (अस्तेनमानिनम्) चोर नहीं मानता। इसलिये (तम् साक्ष्यम् न नयेत) उसकी गवाही कभी न मानें।