Manu Smriti
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कार्ष्णरौरवबास्तानि चर्माणि ब्रह्मचारिणः ।वसीरन्नानुपूर्व्येण शाणक्षौमाविकानि च ।2/41

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अब तीनों वर्णों के ब्रह्मचारियों का चमड़ा आदि पहनना कहते हैं। कृष्णमृग (कालाहिरन) रुरुनामक मृग (हिरन) बकरे का चमड़ा ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य क्रमानुसार शरीर के ऊपरी भाग में और सन, तीसी और भेड़ के सूत का कपड़ा निम्न शरीर (शरीर के नीचे के भाग) में धारण करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ब्रह्मचारिणः तीनों वर्णों के ब्रह्मचारी आनुपूव्र्येण क्रमशः काष्र्णरौरववास्तानि चर्माणि आसन के रूप में बिछाने के लिए काला मृग, रूरूमृग और बकरे के चर्म को च तथा ओढ़ने - पहरने के लिए शाण- क्षौम आविकानि सन, रेशम और ऊन के वस्त्रों को वसीरन् धारण करें ।
टिप्पणी :
‘‘एक - एक मृगचर्म उनके बैठने के लिए ..... देना चाहिये ।’’ (सं० वि० वेदारम्भः संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ब्रह्मचारी क्रमशः कृष्णमृग, रुरुमृग और अजमृग की छाल बैठने के लिए धारण करें, और सन, अलसी, तथा ऊन के बने वस्त्र पहिनें।
 
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