Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
और इन बड़े शक्तिमानों के सूक्ष्म अवयवों को अपने विकार में मिलाकर समस्त सृष्टि को बनाया। प्रकृति और परमात्मा के सम्बन्ध से सब तन्मात्रा अहंकार इन्द्रिय पैदा हुए हैं, अर्थात् परमात्मा और प्रकृति के योग से पैदा हुए हैं।
टिप्पणी :
*जब परमात्मा ने प्रकृति को संचालित किया, तब वस्तुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से आकाश उत्पन्न हुआ, क्योंकि इसके बिना आकाश नहीं हो सकता। जब आकाश हुआ तब उसमें वायु संचालित हुई। वायु के संचालन के कारण अग्नि परमाणु एकत्रित हो गये। अग्नि-परमाणुओं के एकत्रित होने से जल-परमाणुओं के मध्य की रूकावट दूर हुई। जल-परमाणुओं के एकत्रित होने से पृथ्वी के परमाणु एकत्रित हो गए, इसी प्रकार सृष्टि की रचना हुई।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(औजसाम्) अनन्त शक्तिवाले (षण्णां अपि) छहों तत्त्वों के (सूक्ष्मान् अवयवान्) सूक्ष्म अवयवों (शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये पांच तन्मात्रायें तथा छठे अहंकार के सूक्ष्म अवयवों) को (आत्ममात्रासु) उनके आत्मभूत तत्त्वों के विकारी अंशों अर्थात् कारणों में मिलाकर (सर्वभूतानि) सब पांचों महाभूतों आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथिवी , की (निर्ममे) सृष्टि की ।