Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
थाती की विधि वर्णन की तथा अदृश्य वस्तु (बन्द) को जैसी से तैसी ही देवे। मेहर को तोड़ कर उसमें से कुछ न लेवे तो किंचितमात्र दोष नहीं।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
साक्षी के अभाव में सब प्रकार के निपेक्षों के बारे में निर्णय करने की यह पूर्वोक्त विधि है। और मुद्रादि से आङ्कित धरोहर के बारे में यह निश्चय है कि यदि वह उस पर से उस मुद्रा-चिह्न को नहीं तोड़ता, तो वह किसी दोष का भागी नहीं बनता।
टिप्पणी :
१. जो धरोहर खुले रूप में रखी जावे उसे ‘निक्षेप’ कहते हैं, और जो मुद्रादि से अंकित करके रखी जाती है, वह उपनिधि कहलाती है।