Manu Smriti
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अच्छलेनैव चान्विच्छेत्तं अर्थं प्रीतिपूर्वकम् ।विचार्य तस्य वा वृत्तं साम्नैव परिसाधयेत् ।।8/187

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
साम उपाय, जो छल से पृथक है, के द्वारा प्रीति पूर्वक जिसको थाती सौंपी गई थी उसको आचरण की पीर ज्ञात कर अपना अर्थ विचारें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो मनुष्य धरोहर रखने वाले के मर जाने पर उसके उत्तराधिकारी को स्वयमेव धरोहर दे देवे, तो राजा या उस धरोहर रखने वाले के बन्धुओं को, उस पर झूठा-मूठा कोई अभियोग न चलना चाहिए। अपितु, सन्देह होने पर, निष्कपट भाव से प्रीतिपूर्वक उस धन का निश्चय करले। अथवा, उसके शील-स्वभाव को जान कर शान्तिपूर्वक ही अपना अभिप्राय सिद्ध करे।
 
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