Manu Smriti
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निक्षेपोपनिधी नित्यं न देयौ प्रत्यनन्तरे ।नश्यतो विनिपाते तावनिपाते त्वनाशिनौ ।।8/185

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो वस्तु जानी हुई थाती रखी जावे वा बिना जानी रखी जावे इन दोनों प्रकार की थातियों को इनके स्वामी के अतिरिक्त उनके पुत्र आदि सम्बन्धियों को न देवे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
निक्षेप और उपनिधि जिस की रखी हो, सदा उसे ही दे, उसके रहते हुए उसके उत्तराधिकारी को न देवे। क्योंकि उसके मर जाने पर ही, उन दोनों प्रकार की धरोहरों पर उसका अधिकार नष्ट होता है, परन्तु उसके जीते हुए वह अधिकार नष्ट नहीं होता।
 
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