Manu Smriti
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तेषां न दद्याद्यदि तु तद्धिरण्यं यथाविधि ।उभौ निगृह्य दाप्यः स्यादिति धर्मस्य धारणा ।।8/184

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि वह धनी व मनुष्य दूसरी बार रखी हुई थाती को भी न देवे जिस थाती का पूर्ण ज्ञान राजा को प्रथम से है तो राजा उससे दोनों थातियों के धन को उससे प्राप्त करे धर्मानुकूल यह कार्य है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, यदि वह उन को उसी प्रकार उस धरोहर के धन को न देवे, तो वह अपराधी है और राजा उसे पकड़वाकर वे दोनों धरोहरें उन के स्वामियों को दिलवावे, यह न्यायधर्म का निश्चय है।
 
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