Manu Smriti
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स यदि प्रतिपद्येत यथान्यस्तं यथाकृतम् ।न तत्र विद्यते किं चिद्यत्परैरभियुज्यते ।।8/183

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तत्पश्चात् वह दूसरा मनुष्य अपनी थाती को उससे मांगे यदि वह दे दे तो उसे सत्यवादी जानना तथा इससे जो अन्य पुरुष (प्रथम थाती सौंपने वाला) अपनी थाती माँगता यथा उसे मिथ्याभाषी जानना।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
फिर मांगने पर, यदि वह उस धन को, जैसा रखा था व जैसा निश्चय किया था, तदनुसार उसी तरह प्राप्त कर ले, तो राजा समझ ले कि दूसरे लोगों ने जो धरोहर न देने की नालिश की है, वह झूठ है और उस के पास उनका कुछ नहीं है।
 
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