Manu Smriti
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यो यथा निक्षिपेद्धस्ते यं अर्थं यस्य मानवः ।स तथैव ग्रहीतव्यो यथा दायस्तथा ग्रहः ।।8/180

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य जिस विधि से ऋणी से धन देवे उसी विधि से अपना धन प्राप्त करें। क्योंकि जैसे देना वैसे ही ग्रहण करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो मनुष्य जिस प्रकार जिस द्रव्य को जिस के हाथ सौंपे, वह उसी प्रकार उस से ले। क्योंकि जैसा देना, वैसा लेना, यह नीति है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः मानवः) जो मनुष्य (यथा) जिस प्रकार (यम् अर्थम्) जिस धन को (यस्य हस्ते) जिसके हाथ में (निक्षिपेत्) धरोहर सौंपे (स तथा एव ग्रहीतव्यः) इसी को उसी प्रकार वापिस लेले। (यथा दयः तथा ग्रहः) जैसा देना वैसा लेना।
 
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